यह योजना अलग-अलग राज्यों में अलग नामों से चलती है, लेकिन उद्देश्य लगभग एक-सा है स्कूल छात्रों, श्रमिकों या दिव्यांग नागरिकों को मुफ्त या सब्सिडी वाली साइकिल देकर उनकी आवाजाही को आसान बनाना। उत्तर प्रदेश में निर्माण श्रमिकों को ₹3,000 की सहायता दी जाती है, बिहार में दिव्यांगजन को इलेक्ट्रिक ट्राइलर साइकिल उपलब्ध कराई जाती है और पश्चिम बंगाल में कक्षा 9 से 12 तक पढ़ने वाले छात्रों को मुफ्त साइकिल दी जाती है। सभी योजनाओं का मकसद शिक्षा, रोजगार और रोजमर्रा की गतिविधियों को सुविधाजनक बनाना है, जिससे लाभार्थी आसानी से अपने काम या स्कूल तक पहुंच सकें।
| राज्य / योजना | लाभ | पात्रता | आयु / सीमाएँ | आवश्यक दस्तावेज़ | आवेदन प्रक्रिया |
|---|---|---|---|---|---|
| उत्तर प्रदेश फ्री साइकिल योजना | निर्माण श्रमिकों को ₹3,000 सहायता | श्रम विभाग में पंजीकृत मजदूर | 18 वर्ष से अधिक | आधार, श्रमिक कार्ड, बैंक पासबुक, निवास प्रमाण, फोटो | श्रमिक पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन, दस्तावेज़ अपलोड, सत्यापन के बाद धनराशि खाते में भेजी जाती है |
| बिहार फ्री इलेक्ट्रिक साइकिल योजना | दिव्यांग नागरिकों को फ्री इलेक्ट्रिक ट्राई-साइकिल | 60% या उससे अधिक दिव्यांगता वाले लोग | कोई अलग आयु सीमा नहीं | आधार, दिव्यांगता प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण, बैंक पासबुक, फोटो | ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण, दस्तावेज़ अपलोड, सूची तैयार होने पर साइकिल वितरण |
| पश्चिम बंगाल सबूज साथी योजना | कक्षा 9-12 छात्रों को मुफ्त साइकिल | सरकारी/सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल के छात्र | स्कूल के नियम अनुसार | आधार, स्कूल-ID, छात्र पहचान प्रमाण | स्कूल द्वारा नामांकन, सूची भेजी जाती है, उसके बाद साइकिल वितरण |
अगर उत्तर प्रदेश की योजना देखें तो यह श्रमिकों की यात्रा संबंधी परेशानी कम करने के लिए आरम्भ की गई है। जो मजदूर श्रम विभाग में पंजीकृत हैं, उन्हें आवेदन करने पर साइकिल खरीदने के लिए तीन हजार रुपये मिलते हैं। पात्रता में यह जरूरी है कि श्रमिक निर्माण क्षेत्र में काम करते हों और कुछ समय से नियमित रूप से जुड़े हों। इसमें निजी लाभ नहीं बल्कि नियमित आवाजाही और काम की सुगमता को बढ़ावा दिया जाता है। आवेदन प्रक्रिया सरल है—जो भी श्रमिक हों वे पोर्टल पर फॉर्म भरकर आधार कार्ड, श्रमिक कार्ड और बैंक पासबुक की प्रतियां अपलोड करते हैं। अधिकारियों द्वारा जांच के बाद राशि सीधे बैंक खाते में जमा की जाती है।
बिहार में दी जाने वाली इलेक्ट्रिक साइकिल योजना खास तौर पर दिव्यांग नागरिकों के लिए लाभदायक है। बैटरी-चालित ट्राइ-साइकिल कई लोगों के लिए mobility का बेहतर साधन बनती है क्योंकि वे साधारण साइकिल का उपयोग करने में परेशानी महसूस करते हैं। इस योजना में उन लोगों को प्राथमिकता दी जाती है जिनकी विकलांगता 60 प्रतिशत या उससे ज्यादा प्रमाणित हो। आवेदन में आधार, दिव्यांगता प्रमाण पत्र और निवास प्रमाण अनिवार्य रूप से मांगे जाते हैं। पंजीकरण ऑनलाइन किया जाता है और फिर जिला स्तर पर सूची तैयार कर ट्राइ-साइकिल का वितरण किया जाता है। इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि यह mobility बढ़ाता है, लेकिन कभी-कभी वितरण की प्रक्रिया समय ले सकती है, जिससे लाभार्थियों को प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
पश्चिम बंगाल की सबूज साथी योजना पूरे देश में सबसे सफल छात्र साइकिल योजनाओं में गिनी जाती है। इसमें कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों को पूरी तरह मुफ्त साइकिल दी जाती है ताकि वे आसानी से स्कूल जा सकें और पढ़ाई जारी रख सकें। यह योजना स्कूल-आधारित है, यानी छात्रों को अलग से आवेदन नहीं करना होता, बल्कि उनके स्कूल खुद छात्रों की सूची तैयार करके शिक्षा विभाग को भेजते हैं। इस वजह से प्रक्रिया छात्रों के लिए आसान बन जाती है, हालांकि कभी-कभी स्कूल-स्तर की देरी या सूची में त्रुटियां बाधा बन सकती हैं। फिर भी यह योजना छात्रों के लिए काफी उपयोगी मानी जाती है।
आयु सीमा की बात करें तो श्रमिक योजनाओं में उम्र 18 वर्ष से ऊपर होनी चाहिए, जबकि छात्र योजनाओं में सिर्फ कक्षा के अनुसार पात्रता तय होती है। दिव्यांग योजनाओं में आयु की सख्त सीमा नहीं लगाई जाती, क्योंकि प्राथमिकता mobility पर होती है। सभी योजनाओं में आधार कार्ड, पहचान प्रमाण, निवास प्रमाण और बैंक विवरण जैसी बुनियादी दस्तावेज़ी प्रक्रिया निर्धारित है। छात्र योजनाओं में स्कूल-आईडी पर्याप्त होती है।
ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया लगभग सभी योजनाओं में सरल है पोर्टल पर पंजीकरण करना, मोबाइल नंबर सत्यापित करना, फिर आवश्यक दस्तावेज़ अपलोड करके फॉर्म सबमिट करना। श्रमिक और दिव्यांग योजनाओं में व्यक्तिगत आवेदन आवश्यक है, जबकि छात्र योजना में स्कूल आवेदन की जिम्मेदारी लेता है। आवेदन जमा होने के बाद अधिकारी सत्यापन करते हैं और फिर लाभ सीधा बैंक खाते में भेजा जाता है या साइकिल का भौतिक वितरण किया जाता है।
इन योजनाओं का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वे शिक्षा, रोजगार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देती हैं। छात्र आसानी से स्कूल पहुंच सकते हैं, श्रमिकों की रोजाना की यात्रा सुगम होती है और दिव्यांग व्यक्ति अधिक आत्मनिर्भर बन पाते हैं। दूसरी तरफ, कुछ सीमाएँ भी देखने को मिलती हैं—जैसे आवेदन प्रक्रिया का समय लेना, जिले-वार वितरण में देरी, और कई बार पोर्टल का तकनीकी मुद्दों के कारण स्लो हो जाना। फिर भी कुल मिलाकर ये योजनाएँ लोगों के दैनिक जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती हैं और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए बड़ी सहायता साबित होती हैं।


